top of page

गरिमामय बातचीत के शक्तिशाली नियम

Writer's picture: Dr. Ujjwal PatniDr. Ujjwal Patni
गलती हो जाए तो तुरंत स्वीकार कीजिए :

यदि किसी कार्य या बातचीत के दौरान कोई गलत तथ्य आपके मुह से निकाल जाए, कोई गलत शब्द आप लापरवाही में कह दें , कोई गलत संभोदन आप अज्ञानता में दे दें तो तुरंत स्वीकार कर लें। अक्सर इंसान जब कोई गलती करता है तो उसके बाद फिर वह तीन गलती और करता है –


  • अपनी गलती छुपाता है ।

  • अपनी गलती पर बहस करता है ।

  • अपनी गलती स्वीकार नहीं करता ।


ऐसी परिस्थिति में वह प्रसंग या विवाद इलास्टिक की तरह खींच जाता है जो काफी अपमान और नुकसान देता है। तुरंत माफी मांग लेना या स्वीकार कर लेना कायरता नहीं है बल्कि बहुत बड़ी बुद्धिमता की निशानी है। आपकी स्वीकारोक्ति आपके अपमान के सारे दरवाजे बंद करती है ।



मेरा मानना है कि भूल स्वीकारने का कार्य सिर्फ साहसी और चरित्रवान लोग ही कर सकते हैं। विश्व में कई विवादों में अक्सर राजनेता और फिल्म सितारे टेलीफ़ोन टेप में अपनी उपस्थिती से मुकरते रहे। उनके मुकरने और विरोध करने से हर रोज़ उन टेपों के अंश समाचार चैनलों की सुर्खियों में आते और उनकी बाल की खाल निकली जाती थी। बाद में फोरेंसिक जांच में वह सिद्ध हो जाता था और कई गुना बदनामी हाथ लगती थी। इसलिए त्रुटि हो जाने पर विवाद वहीं रफा दफा कीजिए, बात आगे बढ़ी तो दूर तक जाएगी और संभाले नहीं संभलेगी।



आप क्या कहते हैं से ज़्यादा महत्वपूर्ण है आप कैसे कहते हैं

कुछ लोगों की बोलने की शैली इतनी तीखी और अपमानजनक होती है कि वे सामान्य बात भी कहते हैं तो लगता है कि दाँत रहें हैं। ऐसे लोगों को पता ही नहीं चलता कि इन्होनें कब किसे चोट पहुंचा दी।


यदि आपका प्रिय व्यक्ति आपसे कहे “ मैं अच्छी तरह जानता हूँ , तुम इस ऊंचाई तक कैसे पहुंचे हो “ तो आप आहत नहीं होंगे क्योंकि आपको लगेगा कि यह लाइन एक प्रशंसात्मक लाइन है । आपको लगेगा कि अवश्य सामने वाला आपकी मुश्किलों और बाधाओं के बारे में बात कर रहा है जिनको हरा कर आपने सफलता प्राप्त की। परंतु यही लाइन कोई चुभने वाली शैली में कह दे तो आपको लगेगा कि ज़रूर वह व्यक्ति यह कहना चाह रहा है कि यहाँ तक तुम जुगाड़ से , रिश्वत से , प्रभाव से या अनैतिक तरीके से पहुंचे हो ।


शब्द वही है परंतु पहले व्यक्ति के लिए आपके मन में आदर भाव बढ़ जाएगा और दूसरे व्यक्ति के लिए दुश्मनी का भाव। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम मंतव्य के अनुसार बोलने का तरीका भी सीखें। शब्दों में भावनाएँ भी संप्रेषित होनी चाहिए। नीचे लिखी लाइन को आप विभिन्न शैलियों में समान शब्दों के साथ कैसे कैसे व्यक्त कर सकते हैं, देखिए।



बहस का अंत गरिमा से कीजिए

आप एक प्रॉफेश्नल हों या किसी संस्था में कार्यरत हों , आपका छोटा परिवार हो या सयुंक्त परिवार हो , आप किसी क्लब का हिस्सा हों या सामाजिक गतिविधियों का हिस्सा हों, यह तय मानकर चलिये की जहां चंद बुद्धिमान लोग होंगे , वहाँ विवाद होगा। किसी भी प्रकार की चर्चा या विवाद का अंत करना बहुत ही संवेदनशील मसला है। मेरा मानना है कि किसी भी बहस का अंत ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप सम्बन्धों को खो दें। इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखिए :-


  • आपकी बहस व्यक्ति के विचार से हो रही है , व्यक्ति से नहीं।

  • हर बहस जीतना ज़रूरी नहीं है, कई बार हारकर भी जीत हासिल होती है।

  • कोई बहस इतनी लंबी नहीं हो सकती कि आप चाहकर भी खत्म न कर सकें।

  • सार्वजनिक जगह पर यदि बहुत आवश्यक न हो तो दूसरों को बहस में शर्मिंदा करने से बचें। हराएँ भी , परंतु सम्मानपूर्वक निकल जाने दें।

  • बहस मुद्दागत है , व्यक्तिगत नहीं। बहस के अगले दिन पुनः उस व्यक्ति को “हैलो” कहना आपके शक्तिशाली होने की पहचान होगा।

  • योजनाबद्ध मौन आपको जीत की संभावनाओं को कई गुना बढ़ा सकता है।

  • किसी भी प्रकार की रिपोर्ट प्रस्तुति , प्रश्नोत्तर सत्र या बहस में अपनी बात सशक्त ढंग से सत्य तथ्यों के साथ रखिए। दूसरों पर ध्यान मत दीजिए।

  • किसी भी बहस में शरीर की अक्षमता, रंग, जाति, क्षेत्र , धर्म या लिंग जैसे विषयों पर कट्टर आक्षेप न लगाएँ अन्यथा बहस का एक बुरा अंत हो जाएगा , साथ ही आपकी छवि का भी।


मेरा मानना है कि बहस की शुरुआत तो कोई भी मूर्ख कर सकता है परंतु सकारात्मक अंत करने के लिए बेहद बुद्धिमता की ज़रूरत होती है।


गड़े मुर्दे मत उखाड़िए

गरिमापूर्ण बहस करना सबके बस की बात नहीं है। लोग बहस में जीतने के लिए या अपनी बात सिद्ध करने के लिए पुराने मुद्दों को बीच में ले आते हैं। पुरानी बातें बीच में लाने से दूसरा पक्ष भी उत्तेजित हो जाता है और आपकी सही बातों को मानने से इंकार कर देता है । विवाद बढ़ जाता है और पुराने घाव भी हरे हो जाते हैं। बार बार गड़े मुर्दे उखाड़ने से अर्थात पुरानी बातों को बीच में लाने से आपका प्रभाव कम हो सकता है , बात मूल मुद्दे से भटक सकती है , और ऐसी बातें भी सामने आ सकती हैं जिनसे आपकी भी पोल भी खुल जाए। बीते विवाद को उठाने वाले व्यक्ति को अपरिपक्व माना जाता है और कोई भी गंभीरता से उनकी बातें नहीं सुनता। इसलिए हर बहस वर्तमान में होनी चाहिए और वर्तमान में खतम होनी चाहिए, न उसमें पिछला दिन आना चाहिए और न ही वो अगले दिन तक जानी चाहिए।


0 views0 comments

Comments


bottom of page