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सफलता पाँच दिन तीज़ और दो दिन धीरे जाने मे हैं!

Writer's picture: Dr. Ujjwal PatniDr. Ujjwal Patni

मशीनी जिंदगी की रफ्तार इतनी तेज हो गयी है कि जीवन को जीने के लिए वक़्त ही नहीं रहा। लक्ष्यों के पीछे भागते-भागते केलेंडर में कब साल बदल जाता है, पता ही नहीं चलता। ना परिवार को वक़्त दे पाते हैं और ना खुद को और इनके बीच लग जाती है, तनाव की वजह से ढेर सारी बीमारियाँ। सफलता की आदतों पर आधारित लोकप्रिय कार्यक्रम वी आई पी से आपको एक कीमती आदत भेंट कर रहा हूँ जिससे आप करीयर में भी शिखर पर पहुंचेंगे और खुद के जीवन का भी आनंद ले पाएंगे। 


यह आदत कहती है कि सप्ताह में 5 दिन तेज जिएँ, लक्ष्यों की जंग लड़ें, जल्दी ऑफिस जाएँ, देर से लौटें, खूब मेहनत करें लेकिन दो दिन जरा धीमे जिएँ। धीमे जीने के सात सिद्धान्त प्रस्तुत हैं।



धीमे दिनों में दुनिया से थोड़ा डिस्कनेक्ट हों

हम गूगल, फेसबुक, इन्स्टाग्राम, व्हात्सप्प, न्यूज़ एप, यूट्यूब की वजह से हम दुनिया से कुछ ज्यादा ही जुड़ गये हैं। सुबह पहली सांस से रात को नींद आते तक दिमाग को आराम ही नहीं मिलता। दो धीमे दिनों में लंबे सामी तक इंटर्नेट को बंद रखें। फोन को इधर उधर छोड़ दें और टीवी वाले कक्ष में ना बैठें। दिन में कुछ मिनट के लिए एक-दो बार फोन देखें और वापस बंद कर दो। निन्यानवे प्रतिशत खबरें वो है जिनसे आपके जीवन में फर्क नहीं पड़ेगा, विश्वास करें।


करीबी लोगों पर ध्यान दीजिए:

सामान्य दिनों में परिवार और मित्रों के साथ होते हुए भी हमारा ध्यान किसी और सोच में लीन होता है| हम बातचीत करते हैं पर ध्यान भटकता रहता है| धीमे दिनों में अपने करीबी लोगों के साथ का आनंद लीजिए। बच्चों के साथ खूब खेलिए। माता-पिता और जीवन साथी के साथ खाना खाइए और गप्प मारिए। जब आप अपने परिवार और मित्रों के साथ क्वालिटी समय बिता पाएंगे तो आप तनाव मुक्त हो जाएंगे| इससे तेज दिनों में आप ज्यादा उत्पादक बनेंगे। आपको कभी अफसोस भी नहीं होगा कि अपनों को वक़्त नहीं दे पाया। बाद के पाँच दिन आप कितना भी व्यस्त रहें, घर वालों को शिकायत नहीं होगी।



प्रकृति का खूब आनंद लीजिए:

हम सभी अपने कार्यों में इतने व्यस्त हैं कि या तो घर में बंद रहते हैं या कार-बस-ट्रेन में समय निकल जाता है| यदि बाहर निकले भी तो मोबाइल में बातचीत में व्यस्त रहते हैं| बाहर जा कर प्रकृति को देखना या महसूस करना हम सभी ने लगभग छोड़ दिया है। गलती से किसी अच्छी जगह में पहुँच गए तो सारा वक़्त सेलफ़ी लेकर फेसबुक व इन्स्टाग्राम में डालने में निकल जाता है धीमे दिनों में जरा आनंद से टहलिए। मिट्टी की सुगंध को, बारिश की बूंदों को, पक्षियों की चहचहाहट को महसूस कीजिये और प्रकृति की हर एक रचना का आनंद लेकर आनंदित हो जाइए|


सिर्फ महत्वपूर्ण काम कीजिये:

धीमे दिनों में कम काम कीजिये और सच कहूँ तो ना भी करेंगे तो चलेगा। अपना सारा फोकस उन कार्यों को दीजिए जो अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं और केवल उन्हीं को पूरा कीजिए| यदि कार्यस्थल पर भी जा रहे हों तो अपने कार्यों और मीटिंग के बीच का कुछ समय रिक्त रखिए| ज्यादा दबाव में मत रहिए। बीच में अपनी पसंद के टाइम पास के लिए कुछ वक़्त निकालिए। आप देखेंगे कि बाद के पाँच तेज दिनों में आपको काम का ज्यादा तनाव नहीं होगा।



पूरा ध्यान आज और अभी पर केन्द्रित कीजिए:

जो बीत गया उसको बदल नहीं सकते और जो आने वाला है, उसका कुछ पता नहीं है, तो फिर चिंता क्यों करना। धीमे दिनों में आज और अभी में जिएँ। मैं जानता हूँ कि यह करना कठिन है मगर यह भी सच है कि अभ्यास से यह असंभव भी नहीं है। आप जो भी कर रहें हों उसमें तल्लीन हो कर उसका भरपूर आनंद लीजिए| आज और अभी आपके आसपास के लोगों ने जो अच्छा किया, उसकी प्रशंसा कीजिए|आप बर्तन या अपनी कार भी धो रहे हो तो उस काम का भार ना लेते हुए पानी की धार और साबुन के बुलबुले को आनंदित हो कर महसूस कीजिए| धीमे दिनों में ज्यादा किच-किच मत कीजिए, जहां हैं वहाँ का आनंद लीजिए।


धीरे-धीरे आनंद के साथ भोजन कीजिए:

अक्सर हम जल्दबाज़ी में खाने को निगल जाते हैं| इस वजह से हम ज़्यादा खा लेते हैं और भोजन का आनंद भी नहीं ले पाते| हम सफलता की आदतों पर आधारित अपने कार्यक्रम में कहते हैं कि पहले खाने को गौर से देखो और आँखों से आनंद लो। फिर नाक के पास लाकर सूँघो और महसूस करो कि कितने मसाले और अन्न हैं। फिर मुंह में डालो लेकिन कुछ पलों के लिए चबाओ मत। सारी स्वाद कोशिकाओं को उस भोजन का आनंद लेने दो, फिर धीरे-धीरे चबाओ। प्रतिभागी आश्चर्य में पड़ जाते है, जब खाने का भी बेहिसाब आनंद आता है और भोजन में डला एक एक मसाला अलग-अलग होकर महसूस होता है ।

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